ज़्यादा सोचना ऐसा हो सकता है जिसे आप बंद करने के लिए अपने ब्रेन को ट्रेन करने की कोशिश कर रहे हो खास कर उस वक़्त जब ये आपके लिए प्रॉब्लम क्रिएट कर रहा हो जैसे की आपके ज़्यादा सोचने की वजह से आप अपने anxiety को बढ़ा दे,आप को उन चीजों से रोके जिसे आप करना चाहते हो|
अपने फ्यूचर के uncertainties पे focus करने में हमें टेंशन होती है| ज़्यादा सोचने से हम अपने प्रेजेंट मोमेंट्स को भी एन्जॉय नहीं कर पाते है|
हम सभी के साथ कुछ ना कुछ प्रोब्लेम्स होती है किसी की प्रॉब्लम बड़ी होती है तो किसी की छोटी| चाहे ज़िन्दगी हमारे सामने कुछ भी ला कर रख दे एक चीज़ हमेशा कॉमन होती है हम उसके बारे में सोचते ज़रूर है| कभी कभी हम कोशिश भी करते है सोचने से बचाने के लिए पर फिर भी वो सोच बार बार हमारे ज़ेहन में अति है|
हम सलूशन के बारे में सोचते है और परेशान होते है|चाहे वो productive हो या न हो|कभी कभी ये सोच इतना constant हो जाता है के इसे रोकना मुश्किल लगता है|
लेकिन अगर हम अपनी ज़िन्दगी में कोई फैसला करना चाहते है और हर पल जीना चाहते है तो हमें अपनी इन सोचों को रोकना होगा|
जिन प्रॉब्लम से हम गुज़रते है, हलाकि उसके लिए अपनी सोचों को रोकना मुश्किल है पर हमें ये करना होगा अपनी सोचो को रोकना होगा| तो हमें क्या करना चाहए ऐसे कंडीशन में| Buddhism और वेस्टर्न साइकोलॉजी के हिसाब से ये आर्ट ऑफ़ acceptance सिखने और उन प्रोब्लेम्स को दूर करने की बात है|
ज़्यादा सोचने से बचने और अच्छी ज़िन्दगी जीने के लिए निचे दिए गये टिप्स को पढ़े
दिमाग का यूज़ कर के प्रेजेंट मोमेंट जो जीने की कोशिश करें
नार्मन फार्ब के 2007 के एक स्टडी के हिसाब से human के दिमाग़ के दो डिफरेंट सेट ऑफ़ नेटवर्क होते है दुनया से डील करने के
पहला नेटवर्क अपने एक्सपीरियंस को एक्सपीरियंस करने के लिए| जो के डिफ़ॉल्ट नेटवर्क है| यह नेटवर्क तब एक्टिवेट होता है जब आप के साथ ज्यादा कुछ नही होता है और आप अपने बारे में सोचना स्टार्ट कर देते है| यह नेटवर्क प्लानिंग और डे dreaming में इन्वोल्व रहता है|
दूसरा नेटवर्क जिसे डायरेक्ट एक्सपीरियंस नेटवर्क कहा जाता है| जब डायरेक्ट एक्सपीरियंस नेटवर्क एक्टिव होता है तो ये एक्सपीरियंस को एक्स्पेरिंस करने का एक और तरीक़ा बन जाता है|
जब ये नेटवर्क एक्टिव हो जाता है तो आप न पास्ट के बारे में सोचते है आर न ही फ्यूचर के बारे में न किसी और के बारे में यहा तक के खुद के बारे में भी नहीं सोचते|इसके अलावा आप उस इनफार्मेशन को एक्सपीरियंस करते है जो आपके सेंस में आ रहा होता है|
इन नेटवर्क का एक इंट्रेस्टिंग फैक्ट ये है के ये दोनों खुद में inversely correlated है|
हाउ टो प्रैक्टिस acceptance
अगर आपने कभी अपनी सोचो को रोकने की कोशिश की होगी तो अपने देखा होगा के और ज्यादा सोचें आपके सामने आ जाती है| ये ऐसा ही है मनो आग से आग को बुझाना फिर भी ये करने के लिए बहुत लॉजिकल थिंग है
जबकि जेंन मास्टर shunry suzuki ने कहा है के अगर आप खुद में परफेक्ट कालम्नेस चाहते है तो आप डिफरेंट इमेजेज जो आपके माइंड में आते है उस से परेशान न हो| उन्हें आने दें और जाने दें टैब ये कंट्रोल में हो जायेंगे| हम अपनी सोचों को सिम्पली देखते है और उन्हें जगह देते है हम उन्हें कंट्रोल करने या अलग रखने की कोशिश नहीं करते है|हम एक कासुअल आब्जर्वर की तरह देखते रहते है|
समझे के सब कुछ आता है और जाता है
Zen Master Shunry Sazuki की हिसाब से दिमाग़ को शांत करने की कुंजी चेंज को एक्सेप्ट करना है| इस फैक्ट को एक्सेप्ट किये बिना के सबकुछ बदलता है हम सही मानसिक संतुलन नहीं ढूंढ सकते है|
हलाकि बदकिस्मती से यह सच है की हमें इसे एक्सेप्ट करना मुश्किल है| हम इसे एक्सेप्ट नहीं करते है इसलिए हम सहते है| हेर चीज़ बदलता है ये यूनिवर्स का फंडामेंटल लॉ है|
हलाकि Sazuki का कहना है के हम यह समझ कर इससे दूर रखते है के हमारे दिमाग़ के कंटेंट लगातार फ्लो में है|
माइंड के आब्जर्वर बन्ने की कोशिश करें
आब्जर्वर बनना सिर्फ अपने बारे में सोचने से ज्यादा है| ये वास्तव में दिमग की अलग हालत है|खुद का और खुद के behavior को ओब्सेर्वे करने की ability आपके behavior और इमोशनल रिएक्शन को बदलने में एक इम्पोर्टेन्ट स्टेप है| जब आप खुद के लिए एक गुड आब्जर्वर बन जायेंगे तो आपको पता चलेगा के कुछ है जो आपको ट्रिगर कर रहा है|माइंड के आब्जर्वर बन्ने का मतलब है के आप अपने माइंड के थिंकिंग पैटर्न से और आप चीजों को कैसे रेस्पोंड कर रहे है उनसे अवेयर हों|
Reframing के आर्ट को समझे
जब overthinking हमारे लिए बेहतर हो जाती है तो इसमें काफी हद तक नेगेटिव सेल्फ टॉक शामिल हो जाती है|हर बार जब हम इनर टॉक को शोए देने की कोशिश करते है तो ये सिर्फ मज़बूत और लिमिटेड हो जाता है|
लेकिन जैसा के हम सभी जानते है के जब ये साइकिल शेप लेना शुरू कर देता है तो ये समझना मुश्किल हो जाता है के इसे कैसे तोरें| यह वह जगह है जहाँ लिटिल पॉजिटिव साइकोलॉजी मदद कर सकता है| खास कर के रेफ्रेमिंग नमक एक विचार|
ways तो रेफ्रामिंग माइंड सेट
- अपने अन्दर की डायलाग और जो लैंग्वेज आप डेली यूज़ करते है उसे पहचाने|
- ध्यान देना शुरू कर दें जब आप नेगेटिव words या सेंटेंसेस का यूज़ कर रहे हो|
- अब टाइम पे ध्यान देने का वक़्त है क आप कब यूज़ यूज़ करते है|
- जब आप देखे के आप कुछ नेगेटिव कर रहे है तो अपने दिमाघ में यूज़ स्टॉप कह कर रोके|
- अब खुद से सवाल करें के क्या आपका assumption सही था|